मुक्त संचार डेयरी फार्म | पॉवरगोठा-PowerGotha
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सितम्बर 19, 2019

मुक्त संचार डेयरी फार्म

मुक्त संचार डेयरी फार्म 

 

डेयरी फार्मिंग – दूध उत्पादन व्यवसाय – परंपरागत तरीके एवं विसंगतियाँ 

 

भारत  में किसान लम्बे अरसे से चली आ रही परंपरागत तरीके अपना कर दूध उत्पादन का व्यवसाय करते है। जिस से वे कृषि के संबंधी क्रिया का लाभ मानते चले आ रहे है।  शायद ही किसी किसान ने दूध पशु की संख्या में लाभप्रद बढ़ौतरी की स्थिति प्रस्तुत की है।  

 

एक पशु से शुरू कर व्यवसाय पांच वर्ष के अंतराल पर भी दो से अधिक पशु नहीं खड़े कर पाते है।  इसके साथ ही औसत दूध उत्पादन क्षमता भी न्यूनतम है। ९०% किसान मुश्किल से दो तीन दुधारू पशु संभल पाते है।  

 

स्पष्ट है की दूध उत्पादन व्यवसाय इरादे , कम पशु के योगदान से लाभप्रद  नहीं हो सकता। जब गाय दूध देना बैंक करती है तथा पशु के गर्भाधान में विलम्ब होता है।  तो व्यवसाय निश्चित रूप से घाटे में चला जाता है।  

 

उपरोक्त  परिस्थिति का निदान यही है की पशु की संख्या में बढ़ोतरी हो तथा  नस्ल सुधार की प्रक्रिया अपनायी जाए।  

 

चित्र १ भारत में परंपरागत भैंस का दूध उत्पादन व्यवसाय।  

 

 

दूध व्यवसाय में असफलता के मूल कारन 

१. परंपरागत तरीके में होनेवाले अधिक परिश्रम , अथक प्रयास तथा पशु का मल एवं मूत्र की बार बार सफाई करना। 

२. चारे का निरंतर व्यवस्था न होना , चारा व्यवस्थापन में योजना का अभाव 

 

भारत में दूध व्यवसाय को लाभप्रद बनाने के उपाय 

 

दैनिक कार्यभार  को कम करना – मुक्त रख-रखाव एवं चारा संग्रह प्रक्रिया अपनाकर पशु की देखभाल को सुगम बनाया जा सकता है। 

 

मुक्त रख-रखाव से पशु पर सकारात्मक प्रभाव बनता है।  इसी कारण पशु प्रसन्न तथा तनाव-मुक्त रहते है, जो अधिक दूध उत्पादन में काफी मददगार साबित होता है।  

 

मुक्त संचार  पद्धति 

 

मुक्त संचार  पद्धति या खुले क्षेत्र में पशु को रखने की विधि निम्न बिन्दुओ को ध्यान में रखकर समझी जा सकती है। 

  1. खुले क्षेत्र में पशु को रखने के क्रम में उन्हें रस्सी से बाँधकर नहीं रखा जाता।  
  2. गाय को कम्पाउंड के अंदर घूमने का स्वातंत्र्य होता है, तथा अंदर बने शेड में ठंडी छाया मिल जाती है। 
  3. चारे की उचित व्यवस्था एवं पानी ३६५ दिन, २४ घंटे उपलब्ध रहता है।  
  4. गाय का गोबर प्रतिदिन प्रति घंटा साफ करने की बिलकुल आवश्यकता नहीं होती। 
  5. गाय एक दूसरे से लड़ती नहीं है तथा सम्पूर्णत: तनाव-मुक्त जीवन बिताती हैं। 

 

आप पूछेंगे, लेकिन ऐसा कैसे संभव हैं ?

सामान्यतः ऐसा देखा गया है की खुले में पशु एक दूसरे को परेशान करते हैं, सींगो से मारने का प्रयास करते हैं।  जिससे सम्भावना हैं की पशु-पालक को पशु सम्पत्ति में नुकसान हो जाये। 

 

 

पारंपरिक डेयरी फार्म 

 

 यकीन कीजिए।  उपरोक्त १ से ५ बिंदु में बताई गई स्थिति निश्चित ही संभव हैं – 

 

मुक्त संचार डेयरी फार्म 

 

 

मुक्त संचार व्यवस्था (खुला क्षेत्र ) में एक गाय को २०० वर्ग फ़ीट खुले क्षेत्र की आवश्यकता होती हैं। 

 

अर्थात, १००० वर्ग फ़ीट में ४ से ५ दुधारू पशु संभाले जा सकते हैं। मुक्त संचार में पशु खुले छोड़ने से पहले बाड़ के कम्पाउंड की व्यवस्था कर लें।  २४ घंटे पिने लायक पानी की अनिवार्य हैं।  

 

परंपरागत डेयरी फार्म के बंधन से निकल कर मुक्त संचार व्यवस्था में घुल-मिलने के लिए पशु को २-३ दिन लग जाते हैं।  इस दौरान डेयरी फार्म के मालिक ने सावधान एवं तत्पर रहने की आवश्यकता हैं।  

 

मुक्त संचार डेयरी फार्म – भैस का फार्म 

 

मुक्त संचार डेयरी फार्म – भैस का फार्म 

 

 

हालाँकि किसान, पशुओं की एक दूसरे को मारने की आशंका से मुक्त संचार पद्धति अपनाने से कतराते हैं।  

 

परन्तु सच यही हैं की मुक्त संचार व्यवस्था में पशु फिर वह चाहे गाय हो भैस हो या बैल, खुश एवं तनाव-मुक्त रहते हैं।  

 

फिर भी अगर मुक्त संचार अपनाने के बाद अगर पशु आक्रमक दिखाई दे, तो एक रस्सी से उसका पैर और मुँह बाँध देने से नियंत्रण पाया जा सकता हैं।  ऐसे स्थिति में पशु अपने सींग का उपयोग नहीं कर पाता। और उसी तरह उनका चलना फिरना भी नियंत्रित हो जाता हैं।  

 

खुले क्षेत्र / मुक्त संचार में पशुशाला के फायदे

भारतीय मुक्त संचार डेयरी फार्म 

कम खर्च

दूध उत्पादन व्यवसाय में मुक्त संचार डेयरी फार्म बनाने से पूंजीगत खर्च की बचत होती हैं।  यही ख़र्चा अन्य व्यवस्था में अधिक होता हैं। सर्वसामान्य किसान भी यह पद्धति अपना सकता है।  

 

कीटाणु एवं रोगमुक्त डेयरी फार्म 

तार जाली या बाड़ के कम्पाउंड बनाने के उपरांत किसी एक तरफ पानी और दूसरी तरफ चारा रखने की व्यवस्था की जाए।  इस व्यवस्था में अपेक्षित है की आप गाय का मुँह चारा खाते समय पूरब या पश्चिम की तरफ हो। इससे सूरज की रौशनी आपके फार्म में अंदर तक आसानी से पहुँचती हैं।  इस रौशनी से आपके फार्म की जमीन सूखी और कीटाणुमुक्त रहेगी। इससे आपका फार्म रोगमुक्त रहने में सहायता होगी।  

 

मुक्त संचार में छत तथा रोगप्रतिरोधक क्षमता वृद्धि 

कोई भी नस्ल के पशु साधारणतः सूखे  जगह बैठना पसंद करते हैं। आपके फार्म में प्राकृतिक पेड़ की छाया या मानवनिर्मित शेड की छाया का होना बहुत जरुरी हैं।  गर्मी के मौसम में इससे पशुओ को काफी आराम मिलता हैं।  

 

सुखी जमींन की वजह से पशु रोगमुक्त तथा छाया से तनावमुक्त रहते हैं।  स्पष्ट हैं की ऐसी अवस्था में दूध उत्पादन में सहज बढ़ोत्तरी पाई जा सकती हैं।  

 

भारतीय मुक्त संचार डेयरी फार्म

डेयरी फार्म या गौशाला में गाय के गर्भाधान के संकेत 

 

चूँकि मुक्त संचार पशुशाला में गाय तथा बछड़े घूमने फिरने हेतु स्वतंत्र रहते हैं। इससे उन्हें सहज व्यायाम हो जाता हैं।  उनके शरीर का संतुलित विकास हो जाता हैं।  

 

स्वभावत: गाय गर्भाधान के संकेत सहज रूप में और सही समय में दिखाई देते हैं।  

 

इस समय उनको अलग किया जाता हैं।  तथा कृत्रिम गर्भाधान करवाने के उपरांत फिरसे पशुशाला में वापस लाया जाता हैं।  

 

पिने का स्वच्छ पानी २४ घंटे उपलब्ध, दूध मात्रा में बढ़ोतरी 

 

मुक्त संचार पशुशाला में पशु उसकी दूध उत्पादकता नुसार जल-ग्रहण करता हैं।  अतः पिने लायक स्वच्छ पानी २४ घंटे ७ दिन पशुशाला में स्वच्छ टंकी में उपलब्ध अनिवार्य हैं।  

 

विभिन्न प्रकार के चारे – हरा चारा, सूखा चारा, पशुखाद और पिने का पानी इन विकल्पों द्वारा ४-५ लीटर पानी दुधारू पशु के पेट में जाने के बाद ही १ लिटर दूध उसके थन में तैयार होता हैं।  अतः जब भी पशु को प्यास लगे, पानी उपलब्ध रहना चाहिए।  

 

यह केवल मुक्त संचार में ही संभव हो पाता हैं।  

मुक्त संचार गोठा

मुक्त संचार डेयरी फार्म में खरारा (गाय का अपना अंग रगड़ना )

मुक्त संचार गोशाला में गाय अपना अंग रगड़ने के लिए पेड़ या कृत्रिम खम्बे का इस्तेमाल करती हैं।  

 

पेड़ या खम्बे से नारियल के पेड़ से बनी रस्सी लपेट दी जाती हैं।  इसपर गाय अपना अंग रगड़के खुजली मिटाती हैं। तथा इससे उनके पुराने बाल झड़ जाते हैं , सारे बाह्य किटक गिर जाते हैं, रक्ताभिसरण अच्छे से होने लगता हैं, उनकी त्वचा तेजोमय होके चमकने लगती हैं।  सारी गाये तनावमुक्त एवं खुशहाल रहती हैं।  

 

इसे खरारा या ग्रूमिंग (Grooming ) कहते हैं।  

 

प्रगत देशों में ग्रूमिंग के लिए महंगे उपकरण इस्तेमाल किये जाते हैं, जो की भारतीय डेयरी फार्म व्यवस्था में निःशुल्क उपलब्ध कराई जा सकती हैं।  

 

गाय के गोबर की व्यवस्था 

 

साधारणतः किसान, दिन में कम से कम २-३ बार गाय का गोबर उठाने में व्यस्त रहता हैं।  सबसे ज्यादा समय इसी में व्यतीत होता हैं।  

 

मुक्त संचार में पुरे महीने में मात्र  २-३ बार ही गोबर उठाने की जरुरत पड़ती हैं।  वह गोबर भी एक अच्छी क्वालिटी के खाद के रूप में मिल जाता हैं।

 

मुक्त संचार में गाय का गोबर पुरे कम्पाउंड में फ़ैल जाता हैं।  सूरज की रौशनी से यह गोबर सुख जाता हैं, तथा गायों के चलने से उसका पावडर सदृश रूप बन जाता हैं।  इसमें हुमणि जैसी कीड़े नहीं बनते। एक सर्वोत्तम खाद पावडर रूप में, अपने खेतों में या बेचने के लिए उपलब्ध हो जाता हैं।  

 

सुचना है की, बरसाती दिनों में गोबर प्रतिदिन उठाया जाए और अपने डेयरी फार्म में कीचड़ बनने न दे। 

 

मुक्त संचार डेयरी फार्म में प्राकृतिक पेड़ की छाया

 श्रमिक खर्च 

कई बार अतिरिक्त श्रम या अतिरिक्त खर्च से कतराते हुए किसान पशु संख्या बढ़ने नहीं देते।  

मुक्त संचार डेयरी फार्म में बहुत सारे काम कम हो जाते हैं।  

 

पशु की जगह बदलना, गोबर बार बार उठाना, पशु को पानी पिलाना, खरारा करना इत्यादि काम कम हो जाते हैं।  इससे श्रमिक की लागत कम होती हैं। परिणाम-वश पशु की संख्या बढ़ाने में मदद होती हैं।  

 

सुरक्षा व्यवस्था 

बाड के कम्पाउंड (लोहे की जाली से चार दीवारी ) बनाने से गाय घातक पशुओं से बची रहती हैं।  कुत्ता, लोमड़ी इत्यादि से बचाव हो जाता हैं।  

विभिन्न उम्र और विभिन्न प्रजनन स्थिति वाले पशु को अलग अलग कम्पार्टमेंट करके अलग झुंड में रखा जाता हैं।  गर्भवती गाय, दुधारू गाय, बछड़े, दूध न देने वाली गाय इत्यादि एक दूसरे से अलग रखे जाते हैं।  

इस सुलभ व्यवस्था के कारण चारा पानी एवं उपचार व्यवस्था आसानी से आवश्यकता नुसार प्रदान की जा सकती हैं।  इससे खर्च में बचत और डेयरी फार्म में प्रगति तय हो जाती हैं।  

 

स्वस्थ गाय 

मुक्त संचार व्यवस्था में स्वास्थप्रद वातावरण तथा खुले में तनाव-मुक्त रहने के कारन गाय शायद ही कभी बीमार होती हैं।  इस वजह से दूध उत्पादकता में निरंतरता बनी रहती हैं।  

निरंतर एक जैसे दूध उत्पादन से अपने धंदे में मुनाफा पाना आसान साबित होता हैं।  

 

इस लेख में मुक्त संचार डेयरी फार्म पद्धति की आवश्यकता पर विमर्श किया गया हैं।  यह सोच भारत की परिस्थितियों में बहुत ही कारगर साबित हो सकती हैं। अतः दूध उत्पादक किसानों को मुक्त संचार पद्धति साइलेज के साथ अपनानी चाहिए।  साइलेज के बारे में आप अगले लेख में पढ़ सकते हैं। 

 

 

– डा शैलेश मदने 

 

 

One Comment on “मुक्त संचार डेयरी फार्म

Dashrath panurang Bhoye
2:15 पूर्वाह्न पर सितम्बर 4, 2020

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